प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat)

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) एक महत्वपूर्ण व्रत है जो हर महीने शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता है। इस व्रत को माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित किया जाता है। प्रदोष व्रत का दिन बहुत पवित्र माना जाता है और लोग इस दिन भगवान शिव की पूजा करते हैं। इस व्रत को रखने से व्यक्ति को मोक्ष मिलता है और सभी पापों से छुटकारा मिलता है।

प्रदोष व्रत का दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करने से शुरू होता है। इसके बाद लोग माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करते हैं। भगवान शिव की कथा सुनने के बाद लोग व्रत रखते हैं। शाम को लोग भगवान शिव की आरती करते हैं और फिर खाते हैं। प्रदोष व्रत का दिन बहुत पवित्र और शांत होता है। इस दिन लोग भगवान शिव की पूजा करके खुशी, शांति और समृद्धि पाते हैं।

प्रदोष व्रत कैसे शुरू करें? (Pradosh Vrat Kaise Suru Kare?)

तिथि चयन: प्रदोष व्रत का तिथि चयन करें। ये तिथि दोनों पक्ष में प्रदोष काल में आती है। शुक्ल पक्ष में व्रत प्रदोष की तिथि (दूसरी तिथि) को किया जाता है, जबकी कृष्ण पक्ष में व्रत त्रयोदशी की तिथि (चतुर्दशी से एक दिन पहले) को किया जाता है।

त्याग और परिक्रमा: प्रदोष व्रत के दिन, भगवान शिव के मंदिर में जाकर शिवलिंग की परिक्रमा करें। इस परिक्रमा के दौरान भक्ति और श्रद्धा से भगवान शिव की पूजा की जाती है।

व्रत का संकल्प: प्रदोष व्रत के दिन, व्रत का संकल्प (संकल्प मंत्र पढ़कर) करें। इसमे आपको अपने इरादे को साफ तौर पर व्यक्त करना चाहिए कि आप प्रदोष व्रत को किस उद्देश्य से कर रहे हैं।

संकल्प मंत्र (Sankalp Mantra)

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:,
ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे,
कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें : जैसे शिवरीहा) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2080,
तमेऽब्दे प्लवंग नाम संवत्सरे दक्षिणायने ,ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे , मासे , पक्षे, तिथौ , वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें : जैसे अभिनेष शुक्ला) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री,
(जिस देवी.देवता की पूजा कर रहे हैं उनका नाम ले :जैसे भगवन शिव)पूजनं च अहं क​रिष्ये।
तत्पूर्वागंत्वेन ​निर्विघ्नतापूर्वक कार्य ​सिद्धयर्थं यथा​मिलितोपचारे गणप​ति पूजनं क​रिष्ये।

उपासना और पूजा: प्रदोष व्रत काल में भगवान शिव की उपासना करें। इस समय आप मंत्र जाप कर सकते हैं, शिव स्तोत्र पढ़ सकते हैं, और उनकी पूजा की विधि का अनुशीलन कर सकते हैं। शिव लिंग पर जल, दूध, मधु, बेल पत्र, धतूरा आदि से अर्चना करें।

व्रत आहार: व्रत के दिन खाने पीने की विशेष ध्यान रखें। आप फल, फूल, मिठाई (दूध से निर्मित), और दूध से बना व्रत आहार खायें। अन्नदान (भोजन का दान) भी करें।

व्रत समाप्ति: प्रदोष काल के अंत में भगवान शिव की आरती करके उनका आशीर्वाद लें। आप प्रसादम को प्रसाद के रूप में ग्रहण करा सकते हैं।

विशेष उपवास: प्रदोष व्रत के दिन मौन व्रत या किसी विशेष उपवास को भी अपनाया जा सकता है। इससे आपका मन व्रत की पवित्रता में और भी विशेष रूप से लिन हो सकता है।

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